Tuesday, June 10, 2008

Gulzar presents Kabir by Abida : मन लागो यार फ़कीरी में

Commentary by Gulzar...

रांझा रांझा करदी हुण मैं, आपे रांझा होई

सुफ़ियों का कलाम गाते गाते आबिदा परवीन खुद सूफ़ी हो गई
उनकी आवाज़ अब इबादत की आवाज़ लगती है
मौला को पुकारती हैं तो लगता है,
हाँ, इनकी आवाज जरूर तुझ तक पहुंचती होगी
वो सुनता होगा, सिरत सदाक़त की आवाज

माला कहे है काठ की, तू क्यूं फेरे मोहे
मन का मणका फ़ेर दे, सो तुरत मिला दूं तोहे

आबिदा कबीर की मार्फ़त पुकारती हैं उसे,
हम आबिदा की मार्फ़त उसे बुला लेते हैं

AbidA starts singing...

मन लागो यार फ़कीरी में,

कबीर रेख सिन्दूर, उर काजर दिया जाय
नैनन प्रीतम रम रहा, दूजा कहां समाय

प्रीत जो लागी भुल गयि, पीठ गयि मन मांहि
रूम रूम पियु पियु कहे, मुख कि सिरधा नांहि

मन लागो यार फ़कीरी में,
बुरा भला सबको सुन लीजो, कर गुजरान गरीबी में

सती बिचारी सत किया, काँटों सेज बिछाय
ले सूती पिया आपना, चहुं दिस अगन लगाय

गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पाय
बलिहारी गुरू आपणे, गोविन्द दियो बताय

मेरा मुझ में कुछ नहीं, जो कुछ है सो तेरा
तेरा तुझ को सौंप दे, क्या लागे है मेरा

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नांहि
जब अन्धियारा मिट गया, दीपक देखिया मांहि

रूखा सूखा खाय के, ठन्डा पानी पियो
देख परायी चोपड़ी मत ललचावे जियो

साधू कहावत कठिन है, लम्बा पेड़ खुजूर
चढे तो चाखे प्रेम रस, गिरे तो चकना-चूर

मन लागो यार फ़कीरी में,
आखिर ये तन खाक़ मिलेगा, क्यूं फ़िरता मगरूरी में

लिखा लिखी की है नहीं, देखा देखी बात
दुल्हा-दुल्हन मिल गये, फ़ीकी पड़ी बारात

जब लग नाता जगत का, तब लग भक्ति होय
नाता तोड़े हरि भजे, भगत कहावे सोय

हद हद जाये हर कोइ, अन-हद जाये कोय
हद अन-हद के बीच में, रहा कबीरा सोय

माला कहे है काठ की तू क्यूं फेरे मोहे
मन का मणका फेर दे, सो तुरत मिला दूं तोहे

जागन में सोतिन करे, साधन में लौ लाय
सूरत डार लागी रहे, तार टूट नहीं जाये

पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूं पहाड़
ताते या चाखी भली, पीस खाये संसार

कबीरा सो धन संचिये, जो आगे को होई
सीस चढाये गांठड़ी, जात देखा कोइ

हरि से ते हरि-जन बड़े, समझ देख मन मांहि
कहे कबीर जब हरि दिखे, सो हरि हरि-जन मांहि

मन लागो यार फ़कीरी में,
कहे कबीर सुनो भई साधू, साहिब मिले सुबूरी में

Gulzar presents Kabir by Abida : भला हुआ मेरी मटकी

Commentary by Gulzar...

सूफ़ियों-संतों के यहां मौत का तसव्वुर बडे खूबसूरत रूप लेता है,
कभी नैहर छूट जाता है, कभी जोडा बदल लेता है,
जो मरता है ऊंच ही उठता है,
तरह तरह से अंत-आनन्द की बात करते हैं,
कबीर के यहां, ये खयाल कुछ और करवटें भी लेता है,
एक बे-तकल्लुफ़ी है मौत से, जो जिन्दगी से कहीं भी नहीं,

माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंदे मोहे ।
एक दिन ऐसा आयेगा, मैं रोदुंगी तोहे ॥ १८ ॥

माटी का शरीर, माटी का बर्तन,
नेकी कर भला कर,
भर बरतन मे पाप पुण्य और सर पे ले,

Abida starts singing...

भला हुआ मेरी मटकी फूटी रे ।
मैं तो पनिया भरन से छूटी रे ॥

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा ना मिलिया कोय ।
जो दिल खोजा आपणा, तो मुझसा बुरा ना कोय ॥

ये तो घर है प्रेम का, खाला का घर नांहि ।
सीस उतारे भुँई धरे, तब बैठे घर मांहि ॥

हमन है इश्क़ मस्ताना, हमन को हुशारी क्या ।
रहे आज़ाद या जग से, हमन दुनिया से यारी क्या ॥

कहना था सो कह दिया, अब कछु कहा ना जाये ।
एक गया सो जा रहा, दरिया लहर समाये ॥

लाली मेरे लाल की, जित देखूं तित लाल ।
लाली देखन मैं गयी, मैं भी हो गयी लाल ॥

हँस हँस कुन्त ना पाया, जिन पाया तिन रोये ।
हाँसि खेले पिया मिले, कौन सुहागन होये ॥

जाको राखे साईंयाँ, मार सके ना कोये ।
बाल न बांकाँ कर सके, जो जग बैरी होये ॥

प्रेम न भाजी उपजै, प्रेम न हाट बिकाय ।
राजा-प्रजा जोही रूचें, शीश देई ले जाय ॥

कबीरा भाठी कलाल की, बहूतक बैठे आई ।
सिर सौंपें सोई पीवै, नहीं तो पिया ना जाये ॥

सुखिया सब संसार है, खाये और सोये ।
दुखिया दास कबीर है, जागे और रोये ॥२६१॥

जो कछु सो तुम किया, मैं कछु किया नांहि ।
कहां कहीं जो मैं किया, तुम ही थे मुझ मांहि ॥

अन-राते सुख सोवणा, राते नींद ना आये ।
ज्यूं जल छूटे माछरी, तडफत नैन बहाये ॥

जिनको साँई रंग दिया, कभी ना होये कुरंग ।
दिन दिन वाणी आफ़री, चढे सवाया रंग ॥

ऊंचे पानी ना टिके, नीचे ही ठहराय ।
नीचे होये सो भरि पिये, ऊँचा प्यासा जाय ॥

आठ पहर चौंसठ घडी, मेरे और ना कोये ।
नैना मांहि तू बसे, नींद को ठौर ना होये ॥

सब रगे तान्त रबाब, तन्त दिल बजावे नित ।
आवे न कोइ सुन सके, के साँई के चित ॥

कबीरा बैद्य बुलाया, पकड के देखी बांहि ।
बैद्य न वेधन जानी, फिर भी करे जे मांहि ॥

यार बुलावे भाव सूं, मोपे गया ना जाय ।
दुल्हन मैली पियु उजला, लाग सकूं ना पाय ॥

Gulzar presents Kabir by Abida : सोऊं तो सपने मिलूं

Commentary by Gulzar...

कबीर को पढते जाओ, परत खुलती जाती है,
आबिदा को सुनते रहो सुरत खुलती रहती है,
ध्यान लग जाता है, इबादत शुरू हो जाती है,
अपने आप आंखें बन्द हो जाती हैं,
कोइ उन्हें सामने बैठ के सुने,
आंखें खोलो तो बाहर नज़र आती हैं,
आंखें मूंदो तो अन्दर,

पीतम को पतियां लिखूं, जो कहूं होये बिदेस ।
तन में मन में नैन में, ताको कहा सन्देस ॥

Abida starts singing...

सोऊं तो सपने मिलूं, जागूं तो मन मांहि ।
लोचन रातें सब घडी, बिसरत कबहू न मांहि ॥

कबीरा सीप समुंद्र की, रते प्यास पियास ।
और बूंद को ना गिहे, स्वाति बूंद की आस ॥

नैनन अन्तर आओ तो, नैन झांक तोहे ल्यूं ।
ना मैं देखूं और को, ना तोहे देखन द्यूं ॥

जात न पूछो साधू की, पूछ लीजिये ग्यान ।
मोल करो तलवार का, पडी रहन दो म्यान ॥

हम तुमहरो सुमिरन करो, तुम मोहे चेतो नांहि ।
सुमिरन मन की प्रीत है, सो मन तुमही मांहि ॥

ज्यूं नैनन में पोतली, यूं मालिक़ घट मांहि ।
मूरख लोग न जाने, बाहर ढूढत जांहि ॥१९२॥

चलती चक्खी देख के, दिया कबीरा रोये ।
दो पट भीतर आईके, साबित गया न कोये ॥

क्या मुखहे बिनती करूं, लाज आवत है मोहे ।
तुम देखत औ-गुन करूं, कैसे भाऊं तोहे ॥

मरिये तो मर जाइये, छूट पड़े जग जार ।
ऐसे मरना तो मरे, दिन में सौ सौ बार ॥

सबद सबद सब कोइ कहे, सबद के हाथ न पांव ।
एक सबद औशुध करे, एक सबद किर घाव ॥

माला तो कर में फिरे, जीभ फिरे मुख मांहि ।
मनवा तो चहूं दिस फिरे, ये तो सुमिरन नांहि ॥

उठा बगोला प्रेम का, तिनका उड़ा आकास ।
तिनका तिनका से मिला, तिनका तिनके पास ॥

नैनन की कर कोठड़ी, पुतरी पलंग बिछाय ।
पलकों की चित डाल के, पी को लिया रिझाय ॥

हरि से तो जन हेत कर, कर हरि-जन से हेत ।
माल मिलत हरि देत है, हरि-जन हरि ही देत ॥

कबीरा संगत साधु की, जौं की भूसी खाय ।
खीर खांड भोजन मिले, साकत संग न जाये ॥

Monday, June 09, 2008

Gulzar presents Kabir by Abida : साहिब मेरा एक है

Commentary by Gulzar...

नशे इकहरे ही अच्छे होते हैं,
सब कह्ते हैं दोहरे नशे अच्छे नहीं
एक नशे पर दूसरा नशा न चढाओ
पर क्या है कि, एक कबीर उस पर आबिदा परवीन
सुर सरूर हो जाते हैं,
और सरूर देह कि मट्टी पार करके रूह मे समा जाता है

सोइ मेरा एक तो, और न दूजा कोये ।
जो साहिब दूजा कहे, दूजा कुल का होये ॥

कबीर तो दो कहने पे नाराज़ हो गये,
वो दूजा कुल का होये !

Abida starts singing...

साहिब मेरा एक है, दूजा कहा न जाय ।
दूजा साहिब जो कहूं, साहिब खडा रसाय ॥

माली आवत देख के, कलियां करें पुकार ।
फूल फूल चुन लिये, काल हमारी बार ॥

चाह गयी चिन्ता मिटी, मनवा बेपरवाह ।
जिनको कछु न चहिये, वो ही शाहनशाह ॥

एक प्रीत सूं जो मिले, तको मिलिये धाय ।
अन्तर राखे जो मिले, तासे मिले बलाय ॥

सब धरती कागद करूं, लेखन सब बनराय ।
सात समुंद्र कि मस करूं, गुरु गुन लिखा न जाय ॥

अब गुरु दिल मे देखया, गावण को कछु नाहि ।
कबीरा जब हम गांव के, तब जाना गुरु नाहि ॥

मैं लागा उस एक से, एक भया सब माहि ।
सब मेरा मैं सबन का, तेहा दूसरा नाहि ॥

जा मरने से जग डरे, मेरे मन आनन्द ।
तब मरहू कब पाहूं, पूरण परमानन्द ॥

सब बन तो चन्दन नहीं, सूर्य है का दल नाहि ।
सब समुंद्र मोती नहीं, यूं सौ भूं जग माहि ॥

जब हम जग में पग धरयो, सब हसें हम रोये ।
कबीरा अब ऐसी कर चलो, पाछे हंसीं न होये ॥

औ-गुण किये तो बहु किये, करत न मानी हार ।
भांवें बन्दा बख्शे, भांवें गर्दन माहि ॥

साधु भूख भांव का, धन का भूखा नाहि ।
धन का भूखा जो फिरे, सो तो साधू नाहि ॥

कबीरा ते नर अन्ध हैं, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥

करता था तो क्यों रहा, अब काहे पछताय ।
बोवे पेड बबूल का, आम कहां से खाय ॥

साहिब सूं सब होत है, बन्दे ते कछु नाहि ।
राइ से परबत करे, परबत राइ मांहि ॥

ज्यूं तिल मांही तेल है, ज्यूं चकमक में आग ।
तेरा सांई तुझमें बसे, जाग सके तो जाग ॥

Wednesday, June 04, 2008

Is intezaar me kis kis se pyar humne kiya !!

Ek aur jaam mehboob ke naam pee liya
kuchh aise muhabbat ka izhaar humne kiya !!

huyii khataa jo tira intizaar humne kiya
is intizaar me kis kis se pyaar humne kiya !!

tamaam umr pe saaqii sharaab jaam likha,
sharaabiyoN meN khudii ko shumaar humne kiya !!

kabhi kabhi mere dil me khayaal aata hai
kaisi kaisi bewafaaoN se pyaar humne kiya !!

dayaar-e-ishq me apna makaam paida kar
sharaab-e-ishq se paidaa dayaar humne kiya !!

gujar gayii jo sabhii shaam ladkhadaatii sii
ki mae'kadoN ko sadaa aabdaar humne kiya !!

talaash pyaar ki, vahshat khumaar ki hai 'Rja'
isii talaash me dil beqraar humne kiya !!

zubaan-e-khaas rahii thii sharaab ghaalib kii,
usii ke taur tareekoN se pyaar humne kiya !!

nazar nazar se milaakar sharaab pii saaqii
terii nazar ko gunehgaar yaar humne kiya !!

zamaane bhar meN bikii daastaaN wafaa ki mirii,
sadaa yooN garm wafaa kaa bazaar humne kiya !!

har ek Khushi mere sang-dil sanam ke saath gayii,
gham-e-firaaq me dil gham-gusaar humne kiya !!

tamaam shab na guzar jaa'e aaNsu'oN meN kahiiN
ki dil ke rone pe ab ikhtiyaar humne kiya !!

udhaar karte rahey umr bhar to mah ke liye.
khudi ko bhechne ka ab ishtihaar humne kiya !!

abhi bacha hai ye Imaan bechane ki khaatir,
bhala raqeeb se kyonkar udhaar humne kiya !!